हिन्दी व्याकरण की पूरी जानकारी है इस पोस्ट में, परीक्षा दृष्टि से महत्त्वपूर्ण
स्वर :- अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं अः ऋ ॠ
व्यंजन :-
क ख ग घ ङ
च छ ज झ ञ
ट ठ ड ढ ण
त थ द ध न
प फ ब भ म
य र ल व
स श ष ह
क्ष त्र ज्ञ
व्यंजन :-
क ख ग घ ङ
च छ ज झ ञ
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स श ष ह
क्ष त्र ज्ञ
भाषा,लिपि और व्याकरण
भाषा
मनुष्य ,अपने भावों तथा विचारों को दो प्रकार ,से प्रकट करता है-
१.बोलकर (मौखिक )
२. लिखकर (लिखित)
१.मौखिक भाषा :- मौखिक भाषा में मनुष्य अपने विचारों या मनोभावों को बोलकर प्रकट करते है।
२.लिखित भाषा:-भाषा के लिखित रूप में लिखकर या पढ़कर विचारों एवं मनोभावों का आदान-प्रदान कियाजाता है।
लिपि:-
लिपि का शाब्दिक अर्थ होता है -लिखित या चित्रित करना । ध्वनियों को लिखने के लिए जिन चिह्नों काप्रयोग किया जाता है,वही लिपि कहलाती है।
२.लिखित भाषा:-भाषा के लिखित रूप में लिखकर या पढ़कर विचारों एवं मनोभावों का आदान-प्रदान कियाजाता है।
लिपि:-
लिपि का शाब्दिक अर्थ होता है -लिखित या चित्रित करना । ध्वनियों को लिखने के लिए जिन चिह्नों काप्रयोग किया जाता है,वही लिपि कहलाती है।
प्रत्येक भाषा की अपनी -अलग लिपि होती है। हिन्दी की लिपि देवनागरी है। हिन्दी के अलावा -संस्कृत,मराठी,कोंकणी,नेपाली आदि भाषाएँ भी देवनागरी में लिखी जाती है।
व्याकरण :-
व्याकरण वह विधा है,जिसके द्वारा किसी भाषा का शुद्ध बोलना या लिखना जाना जाता है। व्याकरण भाषाकी व्यवस्था को बनाये रखने का काम करते है।
व्याकरण भाषा के शुद्ध एवं अशुद्ध प्रयोगों पर ध्यान देता है। इस प्रकार ,हम कह सकते है कि प्रत्येक भाषाके अपने नियम होते है,उस भाषा का व्याकरण भाषा को शुद्ध लिखना व बोलना सिखाता है। व्याकरण केतीन मुख्य विभाग होते है :-
१.वर्ण -विचार :- इसमे वर्णों के उच्चारण ,रूप ,आकार,भेद,आदि के सम्बन्ध में अध्ययन होता है।
२.शब्द -विचार :- इसमे शब्दों के भेद ,रूप,प्रयोगों तथा उत्पत्ति का अध्ययन किया जाता है।
३.वाक्य -विचार:- इसमे वाक्य निर्माण ,उनके प्रकार,उनके भेद,गठन,प्रयोग, विग्रह आदि पर विचार कियाजाता है।
हिन्दी संज्ञा
परिभाषा - संज्ञा का शाब्दिक अर्थ होता है : नाम। किसी व्यक्ति,वस्तु,स्थान तथा भाव के नाम को संज्ञा कहाजाता है अर्थात किसी व्यक्ति, स्थान, वस्तु आदि तथा नाम के गुण, धर्म, स्वभाव का बोध कराने वाले शब्दको संज्ञा कहते हैं। जैसे - श्याम, आम, मिठास, हाथी आदि।
संज्ञा के प्रकार :-
१.व्यक्तिवाचक संज्ञा
२.जातिवाचक संज्ञा
३.भाववाचक संज्ञा
४.समूहवाचक संज्ञा
५.द्रव्यवाचक संज्ञा
मुख्य रूप से संज्ञा तीन प्रकार की होती है' -
1. व्यक्तिवाचक संज्ञा।
2. जातिवाचक संज्ञा।
3. भाववाचक संज्ञा।
१.व्यक्तिवाचक संज्ञा:- जिस शब्द से किसी एक विशेष व्यक्ति,वस्तु या स्थान आदि का बोध होता है, उसेव्यक्तिवाचक संज्ञा कहते है। राम
२.जातिवाचक संज्ञा :- जिस शब्द से एक ही जाति के अनेक प्राणियो या वस्तुओं का बोध हो ,उसे जातिवाचक संज्ञाकहते है। जैसे - कलम
३.भाववाचक संज्ञा :- जिस संज्ञा शब्द से किसी के गुण,दोष,दशा ,स्वभाव ,भाव आदि का बोध होता हो, उसेभाववाचक संज्ञा कहते है। जैसे -ईमानदारी
४.समूहवाचक संज्ञा :- जो संज्ञा शब्द किसी समूह या समुदाय का बोध कराते है, उसे समूहवाचक संज्ञा कहते है ।जैसे -भीड़
५.द्रव्यवाचक संज्ञा :- जो संज्ञा शब्द ,किसी द्रव्य ,पदार्थ या धातु आदि का बोध कराते है, उसे द्रव्यवाचक संज्ञाकहते है। जैसे -,दूध ,पानी आदि।
हिन्दी समास
समास :- जब दो या दो से अधिक पद बीच की विभक्ति को छोड़कर मिलते है,तो पदों के इस मेल को समासकहते है।
समास के मुख्य सात भेद है :-
१.द्वन्द समास २.द्विगु समास ३.तत्पुरुष समास ४.कर्मधारय समास ५.बहुव्रीहि समास ६.अव्ययीभाव समास७.नत्र समास
१.द्वंद समास :- इस समास में दोनों पद प्रधान होते है,लेकिन दोनों के बीच 'और' शब्द का लोप होता है।
राम-सीता
सीता-राम
हार-जीत
पाप-पुण्य
वेद-पुराण
लेन-देन
२.द्विगु समास :- जिस समास में पहला पद संख्यावाचक विशेषण होता है,उसे द्विगु समास कहते है। जैसे - त्रिभुवन ,त्रिफला ,चौमासा ,दशमुख
३.तत्पुरुष समास :- जिस समास में उत्तर पद प्रधान होता है। इनके निर्माण में दो पदों के बीच कारक चिन्होंका लोप हो जाता है। जैसे - राजपुत्र -राजा का पुत्र । इसमे पिछले पद का मुख्य अर्थ लिखा गया है। गुणहीन,सिरदर्द ,आपबीती,रामभक्त ।
४.कर्मधारय समास :- जो समास विशेषण -विशेश्य और उपमेय -उपमान से मिलकर बनते है,उन्हें कर्मधारयसमास कहते है। जैसे -
१ नील कमल ....नीले रंग का कमल
२ कृष्ण -सर्प ....काले रंग का सर्प
३ भला मानुष ....भला मनुष्य
५.बहुव्रीहि समास :- जिस समास में शाब्दिक अर्थ को छोड़ कर अन्य विशेष का बोध होता है,उसे बहुव्रीहिसमास कहते है। जैसे -
चंद्रशेखर ----चन्द्रमा है जिसके शिखर पर अर्थात शिव जी
घनश्याम -घन के समान श्याम है जो -कृष्ण
गजानन ----गज के समान आनन है जिसका अर्थात गणेश
चक्रपाणि----चक्र है जिसके हाथ में अर्थात विष्णु या कृष्ण
चतुरानन ----चार आनन है जिसके अर्थात ब्रह्मा
दशानन -दस मुहवाला -रावण
नील कंठ ----नीला कंठ है जिसका अर्थात शिव जी |
६.अव्ययीभाव समास :- जिस समास का प्रथम पद अव्यय हो,और उसी का अर्थ प्रधान हो,उसे अव्ययीभावसमास कहते है।
आजीवन - जीवन-भर
यथासामर्थ्य - सामर्थ्य के अनुसार
यथाशक्ति - शक्ति के अनुसार
यथाविधि- विधि के अनुसार
यथाक्रम - क्रम के अनुसार
भरपेट- पेट भरकर
हररोज़ - रोज़-रोज़
हाथोंहाथ - हाथ ही हाथ में
रातोंरात - रात ही रात में
प्रतिदिन - प्रत्येक दिन
बेशक - शक के बिना
निडर - डर के बिना
निस्संदेह - संदेह के बिना
प्रतिवर्ष - हर वर्ष
७.नत्र समास :- इसमे नही का बोध होता है। जैसे - अनपढ़,अनजान ,अज्ञान ।