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दक्षिण चीन सागर की समस्या#

कुछ समय से दक्षिण चीन सागर में चीन की बढ़ती गतिविधियों के कारण यह क्षेत्र पूर्वी एशियाई देशों के बीच तनाव का कारण बना हुआ है। दक्षिण चीन सागर में चीन की सैन्य गतिविधियों से अमेरिका भी चैकस है। अमेरिका ने इस पर सख्त आपत्ति जताई है।

दक्षिण चीन सागर की भौगोलिक स्थिति
यह चीन के दक्षिण में स्थित एक सीमांत सागर है। यह प्रशांत महासागर का एक  भाग है, जो सिंगापुर से लेकर ताईवान की खाड़ी तक लगभग 35 लाख वर्ग किमी. में फैला हुआ है। पाँच महासागरों के बाद यह विश्व के सबसे बड़े जलक्षेत्रों में से एक है। इस सागर के छोटे-छोटे द्वीपों पर इसके तट से लगते विभिन्न  देशों की संप्रभुता की दावेदारी है।

इसका महत्व
यह सागर दुनिया का बहुत ही महत्पूर्ण व्यापार मार्ग है। इस क्षेत्र से हर वर्ष कम से कम 5 खरब डॉलर के कर्मिशयल गुड्स की आवाजाही होती है। यू.एस. डिपार्टमेंट ऑफ एनर्जी के अनुमान के अनुसार यहाँ तेल और प्राकृतिक गैस का विशाल भंडार है।

विवाद क्यों है ?
दक्षिण चीन सागर कई दक्षिणी-पूर्वी एशियाई देशों से घिरा हुआ है। इनमे चीन, ताइवान, फिलीपीन्स, मलेशिया, इंडोनेशिया और वियतनाम हैं। दरअसल, 1947 में चीन ने एक मैप के जरिए सीमांकन का दावा पेश किया, जिसमें लगभग पूरे इलाके को शामिल कर लिया। कई एशियाई देशों ने इस पर असहमति जताई थी।

कानून क्या है ?
सन् 1982 के यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन ऑन द लॉ ऑफ द सी के अनुसार किसी देश की पहुंच अपने समुद्री तटों से 200 नॉटिकल मील की दूरी तक ही होगी। इस संधि को चीन, वियतनाम, फिलीपीन्स और मलेशिया सभी ने मंजूर किया है। लेकिन अमेरिका ने मंजूर नहीं किया। रिपब्लिकन सिनेटर्स ने इसे यह कहते हुए नामंजूर कर दिया था कि इस संधि से समुद्री संचालन में अमेरिकी संप्रभुता को खतरा रहेगा।

चीन की गतिविधियां
चीन ने दक्षिण चीन सागर में लगभग सात कृत्रिम द्वीप बनाकर उन पर ऐंटी एयरक्राफ्ट और ऐंटी मिसाइल सिस्टम लगा लिया है। चीनी जलसेना ने समुद्र विज्ञान पोत द्वारा छोड़े गए एक अमेरिकी ड्रोन को जब्त भी कर लिया था। जब्त ड्रोन के बारे में अमेरिका का कहना था कि यह दक्षिण चीन सागर के अंतरराष्ट्रीय जल क्षेत्र में चलाए जा रहे वैध सैन्य सर्वे का हिस्सा था, जो जल की लवणता, तापमान और स्वच्छता संबंधी सूचनाएं इकट्ठा कर रहा था।

अमेरिका की भूमिका
यद्यपि अमेरिका ने दक्षिण चीन सागर पर सीधे कोई दावा नहीं किया है, लेकिन इस क्षेत्र में उसके राजनीतिक और आर्थिक हित जुड़े हुए हैं। प्रत्येक वर्ष दक्षिण चीन सागर से 1.2 खरब डॉलर का अमेरिकी व्यापार होता है। वॉशिंगटन ने फिलीपीन्स से पारस्परिक रक्षा संधि कर रखी है। अमेरिका इस द्वीपीय देश को सुरक्षा-सहयोग देने के लिए प्रतिबद्ध है।

 फिलीपीन्स और चीन में मिसचीफ रीफ के कारण कूटनीतिक संबंध नहीं हैं, क्योंकि दोनों ही देश इस पर अपना अधिकार जताते हैं।अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ट्रंप के विदेश मंत्री ने भी हाल ही में चीन को दक्षिण चीन सागर पर बनाए कृत्रिम द्वीपों को खाली करने को कहा है। अमेरिका का कहना है कि इस क्षेत्र में स्थिरता का बहुत महत्व है और अगर चीन को इस जलक्षेत्र से आवागमन के नियम कायदों का किसी भी रूप में निर्धारण करने दिया गया, तो इससे पूरी वैश्विक अर्थव्यवस्था को खतरा उत्पन्न हो जाएगा। अमेरिका के अनुसार अब चीन के प्रति नया हख अपनाने की जरूरत है।

भविष्य में क्या हो सकता है ?
कई विश्लेषकों का मानना है कि आने वाले समय में यह विवाद सैन्य-संघर्ष का रूप ले सकता है। चीन की कुछ गतिविधियों को हेग की अदालत में पहले ही चुनौती दी गई थी, और उसमें चीन को कानून के उल्लंघन का दोषी पाया गया है। लेकिन चीन यह मानने को तैयार नहीं है। पिछले साल इस अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण ने व्यवस्था दी थी कि चीन के दावों का कोई कानूनी आधार नहीं है।

 इस आदेश को भी बीजिंग ने अस्वीकार कर दिया है। चीन के नजरिए को देखते हुए अमेरिका ने इस क्षेत्र में अपनी सैन्य और खुफिया गतिविधियां बढ़ा दी हैं।

अन्य देशों के दृष्टिकोण
दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों में लाओस और कंबोडिया को छोड़कर शेष अन्य देश चीन पर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के फैसले को मानने के लिए दबाव बनाना चाहते हैं। अमेरिका, ब्रिटेन और  यूरोपियन यूनियन मध्यस्थता का समर्थन करते हैं। वही चीन का दावा है कि उसे करीब 40 से 60 देशों का समर्थन हासिल है।दक्षिण चीन सागर पर स्थितियां काफी नाजुक हैं। अमेरिका का दबाव बढ़ने पर चीन भी प्रतिक्रिया से पीछे नहीं हटेगा।

विभिन्न समाचार पत्रों पर आधारित।

आईआईएम विधेयक को कैबिनेट की मंजूरी प्राप्त हुयी:

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) विधेयक 2017 को मंजूरी दे दी गई जिसके तहत आईआईएम अपने छात्रों को डिग्री प्रदान कर सकेंगे। इन्हें राष्ट्रीय महत्व का संस्थान घोषित किया गया है। कैबिनेट द्वारा विधेयक को मंजूरी देने के साथ ही आगामी बजट सत्र में इसे संसद में पेश किए जाने की संभावना है।

आईआईएम अब अपने छात्रों को डिग्री दे सकेंगे। सोसायटी होने के कारण प्रतिष्ठित आईआईएम वर्तमान में डिग्री देने को अधिकृत नहीं हैं और प्रबंधन में परास्नातक डिप्लोमा और फेलो प्रोग्राम की डिग्री देते हैं। हालांकि इन पाठ्यक्रमों को क्रमश: एमबीए और पीएचडी के बराबर माना जाता है लेकिन समानता वैश्विक रूप से स्वीकार्य नहीं है खासकर फेलो प्रोग्राम के लिए।

बयान में कहा गया है कि विधेयक में संस्थानों को पूर्ण स्वायत्ता दी गई है जिसमें पर्याप्त जवाबदेही भी होगी। विधेयक में जिस ढांचे का प्रस्ताव है उसमें इन संस्थानों का प्रबंधन बोर्ड से संचालित होगा जहां संस्थान के अध्यक्ष और निदेशक बोर्ड द्वारा चुने जाएंगे। बोर्ड में विशेषज्ञों और पूर्ववर्ती विद्यार्थियों की ज्यादा भागीदारी होगी। इसके साथ महिलाओं और अनुसूचित जाति और जनजाति के सदस्यों को भी शामिल किया जाएगा।

बिल में इस बात का भी उल्लेख है कि संस्थानों के प्रदर्शन की एजेंसियों से समय समय पर समीक्षा कराई जाएगी और इसके नजीते सार्वजनिक किए जाएगें। संस्थानों की सालाना रिपोर्ट संसद में पेश की जाएगी और ये कैग के ऑडिट के दायरे में आएंगे। इस बिल को मंजूरी देने के साथ ही आगामी बजट सत्र में इसे संसद में पेश किए जाने की संभावना है।

विधेयक में आईआईएम के संयोजन फोरम का भी प्रस्ताव है जो सलाहकार संस्था के तौर पर काम करेगा। मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने शुरू में एक उपधारा जोड़ने पर विचार किया था जिसके तहत इन संस्थानों का विजिटर राष्ट्रपति को बनाया जाना था लेकिन इसे हटा दिया गया और समझा जाता है कि यह उस मसौदे का हिस्सा नहीं है जो आज कैबिनेट के समक्ष रखा गया।

गौरतलब है कि देश में आईआईएम को ऑटोनमी देने की मांग काफी दिन से उठ रही थी जिसे देखते हुए सरकार ने नया बिल लाकर इन संस्थानों को मजबूत बनाने का फैसला किया।

जापान ने सेना के लिए पहला संचार उपग्रह लांच किया:

सेना की क्षमता बढ़ाने के लिए जापान के रक्षा मंत्रालय ने पहला संचार उपग्रह लांच किया है। इससे सेना के तीनों अंगों (थल सेना, वायुसेना और नौसेना) के बीच सूचनाओं का सटीक आदान-प्रदान हो सकेगा। चीन के साथ समुद्री सीमाओं और द्वीपों पर अधिकार को लेकर जारी तनातनी के बीच जापान ने अपने सशस्त्र बलों की क्षमता बढ़ाने की प्रक्रिया शुरू की है। संसद ने वर्ष 2008 में अंतरिक्ष के इस्तेमाल को लेकर प्रस्ताव पारित किया था।
जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी (जाक्सा) और मित्सुबिशी हैवी इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने 24 जनवरी 2017 को अत्याधुनिक एक्स बैंड पर आधारित किरामेकी-2 को एच-2ए लांच व्हिकल से सफल प्रक्षेपण किया। सेटेलाइट को कागोशिमा स्थित प्रक्षेपण केंद्र से छोड़ा गया। सशस्त्र बल सेल्फ डिफेंस फोर्सेज (एसडीएफ) के संचार नेटवर्क को उन्नत करने के मिशन के तहत रक्षा मंत्रालय का यह पहला सेटेलाइट है। दो और संचार उपग्रह प्रक्षेपित किए जाएंगे।
इसकी मदद से सैन्य बल सीधे संपर्क स्थापित कर सकेंगे। हिद महासागर क्षेत्र पर विशेष नजर रखी जा सकेगी। समुद्री लुटेरों से निपटने में भी यह मददगार साबित होगा।

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