वैश्विक तापमान में लगातार वृद्धि और ग्लोबल वॉर्मिंग

वैश्विक तापमान में लगातार वृद्धि और ग्लोबल वॉर्मिंग

- साल 2015 के ज्ञात इतिहास का सबसे गर्म साल साबित हो जाने के बाद मौजूदा साल 2016 को लेकर भी आशंकाएं गहराने लगी हैं। वैश्विक तापमान पर नजर रखने वाली अमेरिका की दो प्रमुख एजेंसियों के मुताबिक 1880 से, यानी जब से दुनिया के तापमान का आधुनिक रिकॉर्ड रखा जा रहा है, वर्ष 2015 धरती का सर्वाधिक गर्म साल रहा।
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- अमेरिका के नैशनल ओशन एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि साल 2015 में भूमि व समुद्री सतह का औसत वैश्विक तापमान 20वीं सदी के औसत से 0.90 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा।

- उसके अनुसार बीता साल सन 2014 के मुकाबले 0.29 डिग्री फारेनहाइट (0.16 डिग्री सेल्सियस) ज्यादा गर्म था, जबकि नासा की रिपोर्ट के अनुसार दोनों वर्षों के बीच का यह फर्क 0.23 डिग्री फारेनहाइट (0.13 डिग्री सेल्सियस) था।

- वैश्विक तापमान में लगातार देखी जा रही इस वृद्धि के लिए ग्लोबल वॉर्मिंग को जिम्मेदार माना जा रहा है। यह भी कहा जा रहा है कि साल 2016 गर्मी का नया रिकार्ड कायम कर सकता है।

- ग्लोबल वार्मिंग ने न सिर्फ मौसम के संतुलन में उथल-पुथल मचा दी है बल्कि हमारे सामाजिक-आर्थिक जीवन पर भी गहरा असर डाला है।
- इसकी वजह से पैदा हुई गरीबी, राजनीतिक अस्थिरता और सामाजिक तनाव दुनिया के लिए अशांति और असुरक्षा की वजह बन गए हैं।

- नाइजीरिया में जलवायु परिवर्तन के कारण भयानक सूखा पड़ा, जिससे वहां बोको हराम जैसे आतंकवादी संगठन को उभरने का मौका मिला। सीरिया में फसलों की बर्बादी, अकाल और महंगाई ने आईएसआईएस के उभार की स्थितियां तैयार कीं।
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- भारत की बात करें तो मॉनसून का मिजाज बिगड़ने का सीधा असर यहां की ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर पड़ा है। बीते साल बेमौसम बारिश और सूखे से धान-गेहूं दोनों साफ हो गए। राजस्थान के बिल्कुल सूखे क्षेत्रों में अब पानी रुकने की समस्या पैदा होने लगी है। चेन्नई अभी पिछले महीने बाढ़ से उबरा है।

- बादल फटने की घटनाएं बढ़ रही हैं। इन बदलावों से खाद्यान्न में हमारी आत्मनिर्भरता प्रभावित हो सकती है।

-ग्लोबल वार्मिंग से लड़ने के लिए पेरिस सम्मेलन में जो प्रस्ताव लिए गए, उन्हें जमीन पर उतारा जाना चाहिए और इससे आगे बढ़कर जो कुछ भी संभव है, वह सब किया जाना चाहिए।
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